लघु उद्योग की समस्याएँ
लघु उद्योग की निम्न समस्याएँ होती हैं:-
- पूँजी व ऋण प्राप्ति की समस्या
- बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा की समस्या
- कच्चे माल की समस्या
- विक्रय की समस्या
- तकनीकी समस्या
पूँजी व ऋण प्राप्ति की समस्या
लघु उद्योग में उद्योग के मालिक को यदि साख या ऋण की आवश्यकता होती है तो लंबे कागजी कार्यवाही करने पड़ते हैं जिस कारण से ऋण का वास्तविक लागत बड़ जाता है अतः मालिक को सेठ, साहूकारों से ऊँचे ब्याज पर ऋण लेना पड़ता है।
बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा
लघु उद्योगों को बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा करना पड़ता है। बड़े उद्योगों के वस्तु कम मूल्य के होते हैं क्योंकि इसमें उत्पादन बड़े इकाई पर किया जाता है जबकि लघु उद्योगों में छोटे इकाई पर उत्पादन किया जाता है जिस कारण से इसका लागत अधिक हो जाता है गुणवत्ता में कमी आ जाती है। अतः इन्हें प्रतिस्पर्धा करना पड़ता है।
कच्चे माल की समस्या
सरकार जब उद्योगों के लिए कच्चे माल का बँटवारा करती है तो लघु उद्योगों के लिए बहुत कम मात्रा ही रखती है जिससे कम गुणवत्ता वाले कच्चे माल प्राप्त होते हैं जिस कारण गुणवत्ता में कमी आ जाती है। तथा इनके पास स्टॉक न होने के कारण बार-बार कच्चा माल क्रय करना पड़ता है। अतः उनको कच्चे माल की समस्या का भी सामना करना पड़ता है।
विक्रय की समस्या
लघु उद्योग में उत्पादन लागत अधिक व गुणवत्ता में कमी के कारण इनको विक्रय की समस्या का सामना करना पड़ता है। इन्हें बाजार में अपनी वस्तुओं को लाने में भी भारी दिक्कत होती है। जिससे उद्योगपति को भारी समस्या का सामना करना पड़ता है।
तकनीकी समस्या
लघु उद्योगों के पास पूँजी की कमी के कारण ये उच्च तकनीक वाले मशीनों का क्रय नहीं कर सकते जिससे ये निम्न गुणवत्ता या सस्ती मशीन ही क्रय कर पाते हैं जिनके कारण इनको मशीनों के मरम्मत आदि में अधिक व्यय करना पड़ता है।